मनुष्य का आदत, संस्कार या चरित्र कैसे बनता है ? [How formed a person's Habit, culture or character?]
मनुष्य का आदत, संस्कार या चरित्र
इस संसार मे जितने भी मनुष्य है, हर मनुष्य का अपना और एक अलग चरित्र है जिसको
आद्त या संस्कार भी कहा जाता है. इस आदत या संस्कार की वजह से हर मनुष्य कि अपनी
एक अलग पहचान बन जाती है. और ये आदत और संस्कार समय के साथ बदते भी रहते है.
किसी व्यक्ति के आदत या संस्कार कैसे बनते है यह समझने के
लिये हमे आत्म स्वरुप कि स्थिति मे जाना होगा यानि स्वयं को आत्मा समझना होगा, किसी भी प्रकार कि आदत या संस्कार आत्मा के ऊपर
चढा हुआ एक आवरण है जैसे पृथ्वि के उपर बाद्लो का आवरण
चुकि हम एक आत्मा है, एक प्रकाश, एक उर्जा है, एक सितारे कि तरह. जब भी हम कोई विचार करते है तो हमारे आत्मा से एक छोटी सी
उर्जा निकलती है और यही उर्जा आत्मा के उपर एक प्रभाव या एक छाप छोड्ती है और ऐसा
बार बार करने पर आत्मा के ऊपर एक आवरण लग जाता है जो हमारे विचारो से ही बना है, और जैसा हमारे ऊपर आवरण होता है वैसा हि आत्मा
कर्म करती है जिसको आदत या संस्कार भी कहा जाता है
इस प्रकार मनुष्य अपने जिवन मे हर सेकंड कुछ ना कुछ विचार
करता रहता है और कर्म करता रहता है जिससे कि आत्मा के उपर परत दर परत आवरण चढता
रहता है और इसी आवरण का प्रभाव हमे आदत या संस्कार के रुप मे दिखाई देता रहता है
आत्मा
के उपर जो आवरण लगा है उसको हम अपने विचार बदल कर ही खत्म या बदला जा सकता है. यदि
हमारे एसे कोई आदत या विचार ऊत्पन्न होते है जो हमे परेशान करते है तो उसके उलट विचार
या कर्म बार बार किया जाय तो वह पुराने आदत या संस्कार बदल जायेंगे.
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