आध्यात्मिकता क्या है? What is spirituality?
अध्यात्म को समझने से पहले यह समझना आवश्यक है कि अध्यात्म कोई profession नही है कि उस क्षेत्र मे कार्य करने के लिये कार्य सिखना पडे, अध्यात्म अपने आप से जुडने का दुसरा नाम है जब हम अध्यात्म कि बात करते है तो भौतिक शरीर के बारे मे बात नही करते उस शरीर मे बैठे आत्मा के बारे मे बात करते है
हम आज के समय मे ऐसे कई लोगो को देखते है जो अध्यत्मिक जीवन (spiritual life) जीते है या उस क्षेत्र मे कार्य करते है, ऐसे लोग जो अध्यत्मिक जीवन या उस क्षेत्र मे कार्य करते है उनका जीवन आम लोगो के जीवन से कुछ अलग होता है, चाहे वह पहनावा हो या बात चित के तरीके हो, यहाँ तक कि उनके भोजन का चुनाव भी आम लोगो से अलग होता है/
अगर हम आम जीवन और अध्यात्मिक जीवन जिने वाले व्यक्तियो मे तुलना करे तो काफी कुछ समानता होने के बावजुद भी उनका व्यक्तित्व अलग दिखाई पड्ता है, इससे हमारे मन मे एक सवाल पैदा होता है कि क्या एसे लोग हमसे अलग है या उनकी सोच अलग है या उनके विचार अलग है,या उनके दुनिया देखने का नजरीया अलग है या वो किसी और ग्रह से आये है/
उदहरण के लिये गौतम बुध्द का जिवन या स्वामी विवेकानंद का जिवन, अगर हम
इनके जिवन को ध्यान दे या इनके जिवन पर विचार करे तो पायेंगे कि इनका जिवन आम लोगो
के जिवन से अलग है हालंकि ये सभी लोग भी हमारी इसी दुनिया ने रहते थे सभी लोगो के बीच, तो ऐसा क्या है जो इन्हे
अलग बनाता है जबकि ये सभी हमारी तरह ही दिखाई देते है?
आज हम एसे कई व्यक्तियो को देखते है जो अलग अलग profession से आते है जैसे कोई Doctor,
Engineer, CA, IAS, Teacher इन सभी के कार्य अलग है और ये सभी अपने अपने
क्षेत्र मे अच्छे कार्य करते है और अपने profession के द्वरा लोगो कि सेवा
करते है/ इन क्षेत्रो मे बहुत से लोग कार्यरत मिल जायेंगे/ यहां तक कि लगभग हर घर मे इस profession से जुडा हुआ व्यक्ति मिल
जयेगा, परंतु अध्यात्मिक जिवन या इस क्षेत्र मे कार्य करने वाले बहुत कम लोग है तो
क्या अध्यात्मिक जिवन बहुत कठिन है? जवाब है- नही! यह संसार का सबसे सरल व उत्तम
जिवन है
कोई व्यक्ति अध्यात्मिक तब होता है जब शारीर मे बैठे अपनी आत्मा को पहचान लेता है और यह जान लेता है की मै यह दिखाई देने वाला शारीर नही हूँ मै आत्मा हूँ एक उर्जा हूँ जो इस शारीर से अलग है और यही आत्मा इस शारीर को चलाती है, कर्म करती है, बात करती है, जब वह व्यक्ति इस बात पर पुरी तरह सुनिशित हो जता है कि मै अत्मा हूँ एक उर्जा हूँ शारीर नही तब वह पुरी तरह से आत्मअभीमानी(soul conscious) होकर जिवन जीता है पुरी तरह जाग्रीत अवस्था मे/
जब हम आत्मा को जान लेते है तब हमारा हर कर्म अत्मा के लिये होता है ना की शरीर के लिये और जैसे – जैसे आत्मा के बारे मे और अधिक जानने लगते है तो हमारे बोल, हमारे कर्म, हमारे विचार, बदलने लगते है और हम अध्यात्म के रास्ते पर निकल पढते है जिसे अध्यात्मिक जिवन कहा जाता है आज हम भौतिक शरीर के बारे मे बहुत कुछ जनते है इसलिये उसे तंदरुस्त व स्वस्थ रखने के लिये तरह तरह के उपाय करते रहते है फिर भी आंदर से हम(आत्म) दुखी हि रहते है जबकि अध्यात्मिक राह पर चलने वला वाला व्यक्ति दोनो (शरीर और आत्मा) को संतुलित कर जिवन जीता है
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