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मनुष्य का आदत, संस्कार या चरित्र कैसे बनता है ? [How formed a person's Habit, culture or character?]

                                   मनुष्य का आदत , संस्कार या चरित्र इस संसार मे जितने भी मनुष्य है , हर मनुष्य का अपना और एक अलग चरित्र है जिसको आद्त या संस्कार भी कहा जाता है. इस आदत या संस्कार की वजह से हर मनुष्य कि अपनी एक अलग पहचान बन जाती है. और ये आदत और संस्कार समय के साथ बदते भी रहते है. किसी व्यक्ति के आदत या संस्कार कैसे बनते है यह समझने के लिये हमे आत्म स्वरुप कि स्थिति मे जाना होगा यानि स्वयं को आत्मा समझना होगा , किसी भी प्रकार कि आदत या संस्कार आत्मा के ऊपर चढा हुआ एक आवरण है जैसे पृथ्वि के उपर बाद्लो का आवरण चुकि हम एक आत्मा है , एक प्रकाश , एक उर्जा है , एक सितारे कि तरह. जब भी हम कोई विचार करते है तो हमारे आत्मा से एक छोटी सी उर्जा निकलती है और यही उर्जा आत्मा के उपर एक प्रभाव या एक छाप छोड्ती है और ऐसा बार बार करने पर आत्मा के ऊपर एक आवरण लग जाता है जो हमारे विचारो से ही बना है , और जैसा हमारे ऊपर आवरण होता है वैसा हि आत्मा कर्म करती है जिसको आदत या संस्कार भी कहा जाता है इस प्रकार मनुष्य अपने जिवन मे हर सेकंड कुछ ना कुछ विचार करता रहता है और कर्म करता रहता है

"परमात्मा " "ईश्वर" " भगवान" "अल्लाह" "ग़ॉड"......... कौन है? [ Who is GOD ?]

हम सब यह जानते है कि हम सब एक आत्मा है हमारा असली स्वरुप एक आत्मा का हि है जो इस पांच तत्वो से बने वाहन रुपी शरीर द्वार आत्मा कर्म करती है और कर्म करने के लिये इंद्रियो का उपयोग करती है/ जब आत्मा शरीर धारण करती है तो अपना एक छोटा सा परिवार भी बनाती है जिसमे उसके अपने बच्चे होते है और ये बच्चे अपने ही माँ-बाप कि तरह होते है किंतु आपस मे गुण व स्वाभाव मे भिन्न होते है , फिर यही क्रम अगली पिढी के साथ भी चलता रहता है और देखते -देखते एक पुरे गाव का निर्माण हो जाता है जो एक ही वंश के होते है/  ठिक इसी प्रकार हम आत्माओ का भी एक पिता है और हम आत्माओ का जन्म भी एक परम आत्मा से हुआ है जो सभी मनुष्य आत्माए एक परम आत्मा कि संतान है जो गुणों मे एक दुसरे से भिन्न – भिन्न है हम सभी आत्माओ के दो पिता है एक परम आत्मा जिसकी सभी आत्माऐ संतान है और दुसरा वो जो हमारे इस पाच तत्व से बने शरीर को जन्म दिया है शरिर को जन्म देने वाले पिता को लौकिक पिता या संसारिक पिता कहते है तथा हम आत्मा को जन्म देने वाले पिता को अलौकिक पिता या परमपिता परमात्मा कहा जाता है/ परम पिता परमात्मा जो सर्वगुण सम्पन्न है ज्योति स्व