हम सब यह जानते है कि हम सब एक आत्मा है हमारा असली स्वरुप एक आत्मा का हि है जो
इस पांच तत्वो से बने वाहन रुपी शरीर द्वार आत्मा कर्म करती है और कर्म करने के लिये
इंद्रियो का उपयोग करती है/ जब आत्मा शरीर धारण करती है तो अपना एक छोटा सा परिवार
भी बनाती है जिसमे उसके अपने बच्चे होते है और ये बच्चे अपने ही माँ-बाप कि तरह होते
है किंतु आपस मे गुण व स्वाभाव मे भिन्न होते है, फिर यही क्रम अगली पिढी के साथ भी चलता रहता है और देखते -देखते एक पुरे गाव का
निर्माण हो जाता है जो एक ही वंश के होते है/
ठिक इसी प्रकार हम आत्माओ का भी एक पिता
है और हम आत्माओ का जन्म भी एक परम आत्मा से हुआ है जो सभी मनुष्य आत्माए एक परम आत्मा
कि संतान है जो गुणों मे एक दुसरे से भिन्न – भिन्न है हम सभी आत्माओ के दो पिता है
एक परम आत्मा जिसकी सभी आत्माऐ संतान है और दुसरा वो जो हमारे इस पाच तत्व से बने शरीर
को जन्म दिया है शरिर को जन्म देने वाले पिता को लौकिक पिता या संसारिक पिता कहते है
तथा हम आत्मा को जन्म देने वाले पिता को अलौकिक पिता या परमपिता परमात्मा कहा जाता
है/
परम पिता परमात्मा जो सर्वगुण सम्पन्न है ज्योति स्वरुप, अजन्मा, निराकार(स्टार समान), परम धाम पार ब्रह्म
मे रहने वाला है और हम आत्माऐ परमात्मा की संतान ब्रह्म मे रहने वाली है हर आत्मा का स्थान उसके
उर्जा स्तर के आधार पर होता है हम आत्माओ का नाम आत्मा हि है सिर्फ शरिर बदलने पर नाम
बदल जाता है परंतु परमात्मा का नाम सदा “शिव” ही रहता है इसलिये शिव ज्योतिलिंग भी
कहा जाता है जैसे स्त्रि लिंग , पुरुष लिंग आदि लिंग
होते है शिव का इस धरती पर अलग अलग कर्तव्य है जिसके सम्मान मे हि अलग अलग धर्मो मे
अलग –अलग नाम ईश्वर, भगवान, अल्लाह, ग़ॉड आदि नामो से जांनते
है/
हम जिस धर्म मे जिस रचना कि पुजा करते है वो भगवान नही है वो भी परमात्मा कि संतान है जो अलग अलग समय पर पैगम्बर, मेसेंजर, धर्मस्थापक बनकर इस धरती पर अपने कर्तव्य पुरा करने आये थे क्योकि भगवान, अल्लाह, ग़ॉड, सभी एक के हि नाम है और ये सारा ब्रम्हांड एक हि ईश्वर कि रचना है
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