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आत्मा और परमात्मा के बीच क्या संबंध है?

 

                   आत्मा और परमात्मा का  संबंध 


प्रत्येक ऊर्जा का अपना एक स्रोत होता है हर एक प्रकार की ऊर्जा कहीं ना कहीं से वह आती है यानी कि अगर ऊर्जा आ रही है  कोई भी ऊर्जा अपने हायर लेवल से लोअर लेवल तक फ्लो होता है   तो प्रत्येक ऊर्जा   कहीं ना कहीं से अगर आई है तो अपने हायर ऊर्जा से आई है अपने से उच्च स्तर की ऊर्जा से आई है और धीरे-धीरे निम्न ऊर्जा की ओर उसका अग्रसर होता है  तो हम इसको इस तरीके से समझ सकते हैं कि-

 हम क्या है? एक ऊर्जा है यानी कि अगर हम ऊर्जा हैं तो हम भी कहीं ना कहीं से हायर ऊर्जा से आए हैं क्योंकि इस बात को हम महसूस कर सकते हैं कि इस वक्त हम जो हैं अभी लोअर फ्रीक्वेंसी में हैं लोअर ऊर्जा स्तर में हैं 

यानी कि जैसे हम अपने आप को यह समझते हैं कि हम आत्मा हैं हम ये समझते हैं कि हम क्या हैं आत्मा हैं तो सोचो हमसे जो हायर ऊर्जा होगी तो उसका क्या नाम होगा क्योंकि हम हिंदी में कहते हैं परम, परम मतलब होता है उच्च हायर टू सुप्रीम परम मतलब होता है सुप्रीम अब उससे ऊपर कुछ नहीं यानी कि अगर हम आत्मा हैं और हमारी हायर जो ऊर्जा है वो परम है तो वो भी तो एक प्रकार की ऊर्जा है और उस ऊर्जा का नाम भी अगर आत्मा  रखा जाए और आत्मा बोला जाए तो क्या हो गया "परम आत्मा " यानी हम आत्मा और वो परमात्मा यानी कि हम परमात्मा से यहां पे आए हैं

 क्योंकि परमात्मा से हमारा जुड़ाव है तो यहां परमात्मा से क्या है हमारा जुड़ाव है यानी कि परम आत्मा से ही हमें क्या मिलता है हमें अपनी आत्मा को ऊर्जा मिलता है यानी कि हर ऊर्जा का यानी कि हर आत्मा का जो जुड़ाव है वह परमात्मा से होना आवश्यक है क्योंकि जब तक परमात्मा से जुड़ाव नहीं होगा तो आत्मा के अंदर किसी प्रकार की कोई ऊर्जा नहीं आएगी और ना ही हम अपने अपने आप को ऊपर उठा पाएंगे तो यहां से देखो जो भी हम दुनिया में कई प्रकार के नाम हैं परमात्मा जिसको हम साधारण भाषा में हम भगवान ईश्वर और भी कई सारे नाम है हम उस नामों पर नहीं जाएंगे क्योंकि हमें अपने शुद्ध ज्ञान के ऊपर ही आगे बढ़ना है तो हम आत्मा और वह परमात्मा  देखो आत्मा और परमात्मा का जुड़ाव है यानी कि जो हमें आत्मा के अंदर जो ऊर्जा आनी है वह परमात्मा से ही आनी है यानी कि हर आत्मा का जुड़ाव परमात्मा से ही होना चाहिए अगर हम किसी और से जुड़ाव करते हैं तो हमारे अंदर ना ही हमारा विकास होगा ना ही हमारे अंदर ऊर्जा आएगी और ना ही हमारे अंदर की जो लेपे है चाहे वो क्रोध हो अहंकार हो किसी प्रकार की ईर्ष्या हो वो कभी दूर नहीं होगा हम कुछ समय के लिए उसको टाल सकते हैं दबा सकते हैं लेकिन हम उसको दूर नहीं कर सकते इसलिए हमें परमात्मा से जुड़ना आवश्यक है 

परमात्मा का ध्यान लगाना आवश्यक है ध्यान का मतलब क्या है हम अपने विचारों के माध्यम से कनेक्शन करते हैं परमात्मा के साथ क्योंकि हम इस शरीर के साथ तो जा नहीं सकते .

 विचार क्या है एक प्रकार की ऊर्जा ही तो है एक सिग्नल ही तो है जैसे हम मोबाइल के माध्यम से एक सिग्नल भेजते हैं जब इतने सारे नेटवर्क के टावर लगे हुए क्या भेजते हैं सिग्नल भेजते हैं उसी प्रकार से हम भी जब याद के रूप में एक सिग्नल भेजते हैं तो परमात्मा से इस प्रकार से कनेक्शन होता है जब कनेक्शन होगा तभी जाके हमारे अंदर ऊर्जा आएगी और हम कई प्रकार की जो व्याकुलता है अज्ञानता है  कई प्रकार की जो समस्या है उससे हमें धीरे-धीरे छुटकारा मिलता जाएगा यह आंतरिक रूप से छुटकारा मिलेगा आत्मिक रूप से छुटकारा मिलेगा भले शारीरिक रूप से मिले चाहे ना मिले वो तो प्राकृतिक  रूप से उसको ठीक करना पड़ेगा लेकिन जो आत्मिक रूप से जो समस्या है वो परमात्मा से कनेक्शन ही हो सकता है ठीक है जैसे एक जैसे एक माता-पिता अपने बच्चे को जन्म देते हैं और कहते हैं कि ये मेरी संतान है ये नहीं कहते कि ये मेरा अंश है अंश का मतलब होता है कि मैंने अपने शरीर के कुछ अंग को काट करके उसको निर्माण किया है तो मेरा अंश होता है लेकिन संतान का मतलब होता है मेरे अंदर से उसका उत्पन्न होना उत्पन्न होना मतलब कि स्वयं वह मैंने उसको उत्पन्न किया है उसको अपने शरीर के अंग को काटकर नहीं या किसी प्रकार से इसको अपनी ऊर्जा को काटकर नहीं मैंने इसको बनाया है यानी उसको उत्पन्न किया है उसी प्रकार से हम आत्मा भी परमात्मा की संतान है ना कि उनका अंश है अंश होने का मतलब यह होता है कि परमात्मा को हमने खंडित किया हुआ है 

या उस ऊर्जा को हमने खंडित किया हुआ है क्योंकि परमात्मा  कभी खंडित नहीं होते हैं   हमने इसको कई बार कई सारे कथ जो हमारे ग्रंथ हैं और भी कई सारे अपने जो गुरु हैं जो इसके बारे में बताते हैं ना परमात्मा को कभी खंडित अविनाशी है जिसको हम कहते हैं अविनाशी है अविनाशी का मतलब जिसका विनाश नहीं होता जिसका खंडित नहीं हो सकता है ना तो हम उनकी संतान हैं तो हम आत्मा परमात्मा की संतान हैं तो हमें परमात्मा से ही जुड़ना पड़ेगा तभी हमारे हर एक समस्या का समाधान हो सकता है तो ये इससे ये कांसेप्ट भी हमारा क्लियर हो जाता है कि आत्मा और परमात्मा का आपस में कनेक्शन है अगर हम आत्मा हैं तो परमात्मा भी है है ना और क्योंकि हायर ऊर्जा अब हायर ऊर्जा के आगे भी हायर ऊर्जा होगी ऐसा नहीं होता है ना सुप्रीम का मतलब होता है सुप्रीम जिसके ऊपर और कुछ नहीं ठीक है सुप्रीम का मतलब पूद परम अब इसके ऊपर कुछ नहीं तो इसलिए आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से होना चाहिए अगर बीच की किसी भी प्रकार की आत्मा बोल  लिया जाए या ऊर्जा बोले जाए कनेक्शन होता है तो शायद हमारे अंदर उतनी समस्या का समाधान नहीं हो पाएगा लेकिन हर आत्मा का जो हर मनुष्य के अंदर आत्मा है जो हर मनुष्य के अंदर जो ऊर्जा है उसका जुड़ाव परमात्मा से होना आवश्यक है 

और ये आध्यात्म जो हम पढ़ते हैं ये आध्यात्म का मार्ग किसके लिए है ये आध्यात्म का आत्मा के लिए ही तो है आत्मा को अगर पहुंचना कहां है परमात्मा से कनेक्शन ही तो करना है अगर हम परमात्मा से कनेक्शन करने का मतलब क्या है कि आत्मा के अंदर ऊर्जा आए उसके अंदर ताकत आए उसके अंदर शक्ति आए उसके अंदर बल आए ताकि वो अपनी हर समस्या का समाधान स्वयं ही कर सके इसलिए हमें हर आत्मा को परमात्मा से जुड़ना होगा या जुड़ना पड़े जुड़ना पड़ेगा तो इसका शुरुआत भी स्वयं के अनुभव से होता है  ये बहुत गहरी बातें हैं ये एक दिन में नहीं समझ में आएगी धीरे-धीरे हम इसका अनुभव करेंगे 

 अगर हमारे सामने स्वादिष्ट भोजन रखा हुआ है और कोई दूसरा व्यक्ति कई सारे व्यक्ति उस  का  बहुत तारीफ कर रहे हैं उसके उसके स्वाद के बारे में उसके सुगंध के बारे में उसके रंग के बारे में तो हमने भी सुन सुन के उसके बारे में जान लिया कि भाई ये इस ये बहुत ही स्वादिष्ट है सुगंधित है अच्छा है लेकिन क्या हमने उसका अनुभव किया नहीं किया ना हमने दूसरों के द्वारा सुनसुन सिर्फ मान लिया इसलिए हमें अगर स्वयं ही अनुभव करना है तो हमें अपना कदम बढ़ाना पड़ेगा हमें अगर उस भोजन का अनुभव करना है तो हमें उसे चखना पड़ेगा उसकी वास्तविकता को अनुभव करना पड़ेगा तब हम कह सकते हैं कि हां जो सारे लोग कह रहे हैं वह सत्य है या फिर यह भी हो सकता है कि जो सारे लोग कह रहे हैं वह तो झूठा ही है मैंने जो अनुभव किया है वही सत्य है क्योंकि मैंने उस चीज को अनुभव किया है ना ही मैंने ना मैंने उसको सुना नहीं है मैंने उसका क्या किया है अनुभव किया है तो अनुभव ही तो आपके ज्ञान को शक्ति देता है अनुभव ही हमारे ज्ञान को शक्ति देता है जब तक हमने अनुभव नहीं किया तब तक उसमें उस ज्ञान में ताकत भी नहीं आती है  तो ये एक दिन में नहीं होगा कोई भी काम एक दिन में नहीं होता है हम धीरे-धीरे धीरे-धीरे आप हम उसकी महसूसता को बढ़ाते चले जाते हैं हम अपने आप को समझते हैं हम परमात्मा को याद करते हैं हम परमात्मा से जुड़ने का प्रयत्न करते हैं तो इस तरीके से क्योंकि हर आत्मा का परमात्मा के साथ कनेक्शन है ही है बस हम भूले हुए हैं उसकी कनेक्शन को हमें बढ़ाना है 

 अगर मान लो किसी तार को हम बैटरी से जोड़ते हैं अगर उस बैट तार बैटरी के साथ ढीला जुड़ा होता है तो बैटरी का पावर उस तार के माध्यम से किसी यंत्र में नहीं पहुंचता डिवाइस में नहीं पहुंचता है तो हमें उसको तार को ठीक करना पड़ता उसी प्रकार से हमारा जुड़ाव भी परमात्मा से सदैव ही है क्योंकि अगर परमात्मा से जुड़ा हुआ नहीं होता तो आज हमारे पास इतनी पावर भी नहीं होती लेकिन हमें इस कनेक्शन को और अच्छे से और अच्छा करना है ताकि हम बाकी के जीवन की जो समस्याएं हैं उसको हम उसका हम देख पाए उसका समाधान कर पाएं इसलिए यहां आत्मा और परमात्मा ये दोनों में अंतर सिर्फ इतना ही है कि परमात्मा को अगर हम भौतिक रूप में जैसे देखते हैं कि पिता और पुत्र होता है उसी प्रकार से ऊर्जा के रूप में तो ऊर्जा के रूप में तो सिर्फ यही होता है कि लोअर एनर्जी और हायर एनर्जी माने निम्न स्तर की ऊर्जा और उच्च स्तर की ऊर्जा तो अगर इसको नाम दे दे इसको एक चित्र दे दे इसको एक प्रतिरूप दे दे और इसको एक भौतिक रूप में भी अगर समझें तो हर ऊर्जा कहां से आई है अपने उच्च ऊर्जा स्तर से आई है यानी कि अगर हम अपने आप को पुत्र मान ले और उसको उनको पिता मान ले उस ऊर्जा को तो ये पिता और पुत्र का संबंध बन जाता है यानी कि आत्मा और परमात्मा का संबंध किस प्रकार का है पिता और पुत्र का संबंध है तो इसमें कोई बुराई नहीं है या इसमें कोई दुविधा नहीं है कि परमात्मा और पिता कैसे हो सकता है है ना क्योंकि हम ऊर्जा है और वह हायर ऊर्जा है तो हर हायर ऊर्जा को क्या कह रहे हैं हम पिता कह रहे हैं है ना वो भी किसको सुप्रीम पावर सुप्रीम एनर्जी यानी परम ऊर्जा परम आत्मा को ही हम क्या कह रहे हैं पिता कह रहे हैं और स्वयं को हम पुत्र के रूप में देख रहे हैं तो इसी प्रकार से जितने भी मनुष्य हैं उस उनके अंदर स्वयं एक ऊर्जा है और आत्मा है और वह सभी के सभी उस परमात्मा की संतान हैं तो यह पूरा विश्व ही एक परिवार की तरह है 

आप देखेंगे इसको अंदर से आप अनुभव करेंगे अनुभव से आप समझेंगे तो पूरा विश्व ही एक परिवार है बस हम अलग-अलग अपना-अपना कर्तव्य को निभा रहे हैं  तो यहां से हमारा कांसेप्ट पूरा क्लियर होता है कि आत्मा और परमात्मा का जो संबंध है वो पिता और पुत्र का संबंध है और आत्मा को वही कर्म करने चाहिए जो परमात्मा से जुड़े और जो ऐसे कर्म कोई ना करें जो परमात्मा से दूर करे इससे तो पूरा क्लियर समझ में आता है कि ऐसा कोई भी कर्म हम जिससे करेंगे जिससे हम परमात्मा से दूर अपने हायर ऊर्जा से दूर होते हैं तो हमारे अंदर की पावर घटती है और हम धीरे धीरे धीरे धीरे निम्न ऊर्जा स्तर तक पहुंचते चले जाते हैं 

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